Tuesday, February 23, 2016

RTI TO RBI ON JUDGEMENT DATED 16-12-2016 OF SUPREME COURT

                            THE RIGHT TO INFORMATION ACT 2005
                          APPLICATION FOR OBTAINING INFORMATION                            

Date:  19-02-2016   

On line  filed on 23-02-2016

To,
Central Public Information Officer,                   
Reserve Bank of India. RIA Division,
Mumbai

1. Name of the Applicant: J. P. Shah

2. Full Address: B-12 Amrapali, Gandhigram, Junagadh [Guj] 362001

Cell: 09924106490 email: jpshah50@yahoo.co.in.

3. Particulars of information required:

Please provide me following information in connection with judgement dated 16-12-2015 of Hon’ble Supreme Court of India, in the matter of transferred case [Civil] No. 91/2015 RBI v/s Jayantilal N. Mistry and other transferred cases {Civil No. 92/2015 to 101/2015 covered by this judgement:

3.1 Date of receipt of judgement copy by RBI and inward number

3.2 Details of day to day action taken on judgement from date of receipt of its copy to date of this RTI application.

3.3 Names, designations, departments and email IDs of officers attending this matter at RBI, as per duty list

3.4 Dates when information is supplied as per CIC decisions with RBI reference number to parties mentioned in said judgement.

3.5 In case information is not supplied, reasons on record.

3.6 Present status of compliance with CIC decisions covered by said judgement.

3.7 email ID of first appellate authority for this RTI application.

3.8 Details of online payment of other charges to RBI for this RTI application at bharatkosh.gov.in for non-tax receipts of central govt.

 4. Details of payment of application fee: Rs.10 paid by debit card
.
5. Please rush the information to me by speed/registered post.

6.  I am an Indian citizen. Please reply in English.

7. The information is in larger public interest affecting compliance with judgements by RBI which affect large number of banking public and transparency of working of banks in India.


Signature of Applicant

1 comment:

  1. भारतीय परम्परा के अनुसार अपनी अच्छी वस्तु का प्रदर्शन करना प्रतिष्ठा की विषय वस्तु मानी जाती हैं, अब समाज में ऐसा कौन सा परिवर्तन आ गया हैं, जिस कारण प्रतिभा को छुपाना पड रहा हैं।
    हमारे देश की आम सच्चाई यह हैं कि शादी जाति पूछ कर की जाती हैं, अब से 50 वर्ष पहले तो ब्राह्मण(लगभग 37 उपजाति), राजपूत (लगभग 43 उपजाति), वैश्य(लगभग 25 उपजाति), यादव(लगभग 9 उपजाति), लोधी- कश्यप- निषाद (लगभग 31 उपजाति) द्वारा अपनी अपनी उपजाति में ही शादी की जाती थी, पिछड़े गावों में अभी भी यह प्रथा हैं। मेरा यह मानना बिलकुल नहीं हैं कि जाति या उपजाति की प्रथा को सजीव रखना चाहिए बल्कि सच को कहाँ ले जायेंगे, गावो की बात छोड़िये उत्तर प्रदेश के शहरो में अधिकांशत सरकारी कर्मचारियों के ट्रांसफर के समय किराये पर मकान जाति पूछ कर दिए जाते हैं, मेरे जानकर एक क्लास-1 के अधिकारी के लिए लखनऊ में किराये का मकान खोजने में एक आश्चर्यजनक समस्या यह आई थी कि सब तय हो जाने बाद जब गृह स्वामी ने जाति पूछी तो मकान किराये पर देने से मना कर दिया था, बात बहुत पुरानी नहीं हैं। जाली जाति प्रमाणपत्र पर कितने लोग अनूसूचित जाति तथा पिछड़े वर्ग के बन कर नौकरी कर रहे हैं, यह संख्या पूर्वी उत्तर प्रदेश में हजारों में हैं। कार्रवाई इसलिए नहीं की जाती हैं कि नियुक्ति अधिकारी प्राय: उनकी जाति अथवा संभ्रांत वर्ग से होते हैं।
    ऐसी स्थिति में जाति-प्रमाण पत्र जबकि लोक सेवा पाने का आधार हैं किस प्रकार गोपनीय अथवा निजता का उललंघन नही करता हैं। वरिष्ठता एवं चयन सूची में वर्ग का नाम लिखा ही होता हैं।
    जब किसी का बच्चा अच्छे अंक लाता हैं तो आस पड़ोस में तथा यहाँ तक कि मिडिया में भी उसकी ज़ोर सौर से चर्चा की जाती हैं। कई चेनलो के लिए वह टीआरपी बढ़ाने का सुनहरा मौका होता हैं। जैसे 2015 में इरा सिंघल (आईएएस)की चर्चा और पूरी शिक्षा का स्तर और हर बात की कई दिन तक मिडिया की सुर्खी रही हैं और होनी भी चाहिए।
    2014 में एक अख़बार बेच कर पढाई करने वाले तथा एक पिछड़े वर्ग का कोचिंग में बाजपुर में नौकरी करने वाले का चयन आईएएस में हो जाने पर सेकण्ड डिवीजन के बावजूद भी अपनी मेरिट पर चयन होने पर सुर्ख़ियो में रहे थे चूँकि उसके वे दोनों ग्रामीण क्षेत्र के गरीब परिवारो से थे। उनकी हर स्थिति एवं जाति गांव पूर्वर्ती जीवन के हर पहलु को सार्वजनिक रूप से दिखया गया था। जस पहली बार मायावती एवं केजरीवाल मुख्यमंत्री बने थे तो दुनिया के मिडिया ने उनकी हर बात को बारीकियों से दिखाया गया था ठीक इसी प्रकार जब मोदी एवं ओबामा अपने देश के प्रधानमंत्री एवं राष्ट्रपति बने तो उनके जीवन की चर्चा भी विस्तार से की गयी थी। और होनी भी चाहिए।
    अब रही कानून की बात विधि के विद्वान लोग भलीभांति जानते हैं जहां पर कानून में किसी शब्द या शब्दावली की स्पष्ट परिभाषा नहीं दी गयी हो तो वहाँ विभिन्न न्यायायलय, विभिन्न विधायिका और विभिन्न कार्यपालिकाए अपने अपने अनुसार परिभाषित करते हैं। परन्तु चूँकि सर्वोच्च न्यायलय का निर्णय संशय वाला होते भी अंतिम होता और मान्य होता हैं।
    जब कोई व्यक्ति जिस आधार पर लोक सेवा का पद सेलेक्शन अथवा इलेक्शन के आधार पर लोक पद ग्रहण करता हैं, तो उसके वह सभी आधार (सत्यता) आम जनता को क्यों नहीं पता होने चाहिए। प्रत्येक व्यक्ति जानता हैं ईश्वर हैं, इसीलिए दुनिया के प्रत्येक स्थान पर किसी न किसी रूप में चाहे उसे धर्म का नाम दे, अथवा अणु इलेक्ट्रोन को परिधि में घुमाने वाली ऊर्जा का नाम दे, अथवा ग्रहो को सौरमंडल में सूर्य की परिधि में घुमाने वाली शक्ति अथवा ऊर्जा का नाम दे, वाइरस के घुमाने वाली होने के रहस्य (रिप्लीकेशन या जींस में परिवर्तन )का नाम दे, अथवा वनस्पतियो में स्वयं उगने के गुणों की शक्ति का नाम दे, चाहे जन्म और मृत्यु का नाम दे अथवा बुद्धि देने वाले का नाम दे और अथवा बुद्धि को ही ईश्वर कहा जाये। परन्तु प्रकृति सत्य हैं और सत्य अथवा प्रतिभा को छुपाना नेचुरल नियम नहीं हो सकता हैं। मार्क शीट, सेवा का अनुभव बौद्धिक सम्पदा का कागज के रूप में एक बहुत छोटा सा टुकड़ा हैं उसको छुपाना नहीं बल्कि अनिवार्य प्रदर्शनीय करना चाहिए।
    सब लोग कूड़े (बुराइयो को छुपाने) की कोशिश करते हैं और अच्छे सामान (प्रतिभा) को सजाने का कुदरत का नियम हैं। कुदरत के विरुद्ध सिद्धांत को कानून नहीं कहा जा सकता हैं।
    फिर लोक सेवक के ऐसे रिकॉर्ड जो उसको किसी प्रकार की हानि नहीं पहुँचते हो बल्कि स्मरणीय एवं प्रदर्शनीय हो तो कानून की विवेकाधीन व्याख्या के पीछे मनस्थिति समय समय पर व्यक्ति से व्यक्ति पर निर्भर हैं। परन्तु प्रकृति के नियम अप्रवर्तनीय होते हैं।

    ReplyDelete